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क्या धूम्रपान सच में कैंसर का कारण बनता है? पूरी जानकारी:
धूम्रपान और कैंसर के बीच का सीधा संबंध, इसके वैज्ञानिक प्रमाण, मिथक, नुकसान और रोकथाम के उपाय — सब कुछ एक जगह विस्तार से

धूम्रपान क्या वास्तव में कैंसर का कारण बनता है?
- धूम्रपान आज दुनिया में मृत्यु और गंभीर बीमारियों के सबसे बड़े कारणों में से एक माना जाता है।
- यह केवल एक आदत नहीं बल्कि एक ऐसा ज़हर है जो धीरे-धीरे शरीर के हर अंग को प्रभावित करता है।
- अक्सर लोग सोचते हैं कि क्या धूम्रपान और कैंसर के बीच सीधा संबंध है या यह सिर्फ डराने वाली बातें हैं।
- विज्ञान और चिकित्सा शोध ने यह साबित कर दिया है कि धूम्रपान न केवल कैंसर पैदा करता है
- बल्कि यह कई तरह के कैंसर का मुख्य कारण भी है।
धूम्रपान और शरीर पर इसका असर
- जब कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है, तो तंबाकू में मौजूद हजारों रसायन शरीर में प्रवेश करते हैं।
- इनमें से कई रसायन कैंसरजनक (Carcinogenic) होते हैं, यानी वे कैंसर पैदा करने की क्षमता रखते हैं।
- तंबाकू के धुएं में निकोटीन, टार, बेंजीन, फॉर्मल्डिहाइड, आर्सेनिक, क्रोमियम, कैडमियम, नाइट्रोसामाइन्स जैसे ज़हरीले तत्व पाए जाते हैं।
- ये फेफड़ों, मुँह, गले, अन्ननली, मूत्राशय, अग्न्याशय और यहां तक कि रक्त तक को प्रभावित करते हैं।
- इन रसायनों के लगातार संपर्क में आने से कोशिकाओं में जेनेटिक परिवर्तन होते हैं,
- डीएनए को नुकसान पहुँचता है, जिससे कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं और अंततः कैंसर का रूप ले लेती हैं।
फेफड़ों का कैंसर और धूम्रपान
- सबसे बड़ा और प्रमाणित उदाहरण फेफड़ों के कैंसर का है। दुनिया भर में फेफड़ों के कैंसर के लगभग 85-90 प्रतिशत मामले धूम्रपान से जुड़े हुए हैं। सिगरेट, बीड़ी, सिगार, पाइप –
- किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन फेफड़ों में टार और अन्य हानिकारक रसायनों को जमा कर देता है।
- ये रसायन फेफड़ों की सतह को नुकसान पहुँचाते हैं, कोशिकाओं के सामान्य विकास को बाधित करते हैं और लंबे समय में कैंसर विकसित कर देते हैं।
- धूम्रपान करने वालों में न केवल कैंसर का खतरा बढ़ता है बल्कि उन्हें इलाज के बाद भी रिकवरी धीमी होती है और मृत्यु का खतरा ज्यादा रहता है।
मौखिक और गले का कैंसर
- भारत और एशिया के कई हिस्सों में तंबाकू चबाने, गुटखा, पान मसाला और धूम्रपान की आदतें आम हैं।
- यह आदत मुँह, जीभ, होंठ, गले और आवाज़ की नली (Larynx) में कैंसर के मामलों को तेजी से बढ़ाती है।
- धूम्रपान के कारण मुंह के अंदर लगातार रसायनों की परत जमती रहती है, जिससे कोशिकाएं असामान्य रूप से बदल जाती हैं।
- धीरे-धीरे यह स्थिति पहले प्रीकैंसरस (Precancerous) और फिर कैंसरस (Cancerous) घाव में बदल जाती है। आवाज़ बदलना, गले में गांठ, निगलने में परेशानी, मुँह के अंदर सफेद या लाल धब्बे इसके शुरुआती संकेत होते हैं।
धूम्रपान से होने वाले अन्य कैंसर
- धूम्रपान का असर केवल फेफड़ों या मुँह तक ही सीमित नहीं है।
- यह अन्ननली, मूत्राशय, किडनी, अग्न्याशय, पेट, गर्भाशय, लिवर और यहां तक कि रक्त कैंसर (Leukemia) का खतरा भी बढ़ाता है। उदाहरण के लिए, मूत्राशय का कैंसर इसलिए बढ़ता है क्योंकि तंबाकू के ज़हरीले तत्व रक्त में घुलकर किडनी से होकर मूत्राशय तक पहुँचते हैं और वहां कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं।
- इसी तरह, अग्न्याशय में यह रसायन ट्यूमर बनने की प्रक्रिया को तेज कर देते हैं।
- गर्भवती महिलाओं में धूम्रपान न केवल कैंसर का खतरा बढ़ाता है बल्कि गर्भपात, समय से पहले डिलीवरी, शिशु में जन्मजात विकार जैसे गंभीर परिणाम देता है।
सेकंड हैंड स्मोक का खतरा
- धूम्रपान केवल करने वाले व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि उसके आसपास मौजूद लोगों को भी प्रभावित करता है।
- इसे सेकंड हैंड स्मोक या पैसिव स्मोकिंग कहते हैं। जब धूम्रपान करने वाला व्यक्ति धुआं छोड़ता है, तो उसमें मौजूद सभी ज़हरीले रसायन आसपास की हवा में फैल जाते हैं।
- इन्हें सांस के जरिए अन्य लोग, बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं भी अपने शरीर में लेते हैं।
- कई अध्ययन बताते हैं कि सेकंड हैंड स्मोक से भी कैंसर का खतरा उतना ही बढ़ जाता है,
- खासकर बच्चों में श्वसन संबंधी बीमारियां, कान के संक्रमण, अचानक शिशु मृत्यु (SIDS) और वयस्कों में हृदय व फेफड़ों के रोग हो सकते हैं।
क्या धूम्रपान छोड़ने से कैंसर का खतरा कम होता है?
- धूम्रपान छोड़ना कैंसर की रोकथाम का सबसे महत्वपूर्ण कदम है।
- जितनी जल्दी इसे छोड़ा जाए, उतना ही फायदा मिलता है। शोध बताते हैं कि धूम्रपान छोड़ने के 1 साल बाद हृदय रोग का खतरा लगभग आधा हो जाता है।
- 5 साल में स्ट्रोक और कुछ प्रकार के कैंसर का खतरा काफी कम हो जाता है।
- 10 साल बाद फेफड़ों के कैंसर का खतरा लगभग आधा रह जाता है। 15 साल बाद यह लगभग उस व्यक्ति के बराबर हो जाता है जिसने कभी धूम्रपान नहीं किया। शरीर धीरे-धीरे खुद को ठीक करता है,
- फेफड़े साफ होने लगते हैं, रक्त संचार सुधरता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है।
- हालांकि, जिन कोशिकाओं में पहले से कैंसर की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, उन्हें पूरी तरह रोकना हमेशा संभव नहीं होता, लेकिन फिर भी जोखिम काफी घटता है।
मिथक और सच
- कई लोग मानते हैं कि सिर्फ हल्का धूम्रपान या कभी-कभी सिगरेट पीना नुकसान नहीं करता, लेकिन यह गलतफहमी है। कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं है।
- कम धूम्रपान करने पर भी कैंसर और हृदय रोग का खतरा बना रहता है।
- कुछ लोग सोचते हैं कि फ़िल्टर वाली सिगरेट या हर्बल सिगरेट सुरक्षित होती है,
लेकिन इनमें भी हानिकारक रसायन मौजूद होते हैं। ई-सिगरेट और वेपिंग को भी सुरक्षित समझा जाता है, - लेकिन इनसे भी निकोटीन और अन्य रसायनों के कारण शरीर को गंभीर नुकसान हो सकता है।